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इस पुस्तक के कुछ अंश ...
अपना ज्ञान प्रदान करो, अपनी कृपा प्रदान करो |”
यह उनकी कृपा ही है कि उन्होंने मानव तन दिया, फिर विवेक
दिया, फिर सत्संग दिया, संतों का दर्शन दिया, सेवा का भाव दिया, अच्छा परिवार
दिया, श्रद्धा-भक्ति-विश्वास दिया, अपने चरणों में प्रेम दिया | सचमुच बड़े ही भाग्यशाली
हैं, नसीबाँवाले हैं हम, कि उस ईश्वर ने हमें इस योग्य समझकर इतना-इतना दिया ! बस
यही प्रार्थना है कि उसका नाम न छूटे, भक्ति-सेवा न छूटे |
स्वर्ग से सुंदर, सपनों से प्यारा, है तेरा दरबार !
हम को हर पल याद रहे,
हे सांई ! तुम्हारा प्यार !!
सांई तेरा प्यार न छूटे |
गुरु दरबार न छूटे |
ब्रह्मज्ञान की जीवन में अति आवश्यकता
दुर्लभ मानव-तन में सिर्फ रोटी, कपडा, मकान और परिवार पाकर
संतुष्ट हो जाना-यह मूर्खता है |
“आहार निद्रा भयमैथुन्म च
सामान्यमेतदपशुभिर्नारायणाम् |”
आहार, निद्रा, भय और मैथुन –ये चार तो पशुओं में भी देखे जाते हैं – मनुष्य इन चार से अधिक आगे न बढ़े तो पशु में और इसमें क्या फर्क ?
तीन चीजों को दुर्लभ बताया – मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व और महापुरुषों का मिलना | आप अगर अपने जीवन को सार्थक
और सफल बनाना चाहते हैं तो ब्रह्मज्ञान की जिज्ञासा भीतर जागृत कीजिए और किसी
श्रोत्रिय, ब्रह्मनिष्ठ, आत्मवेत्ता महापुरुष को ढूंढकर उनसे भवसागर से पार जाने
की युक्ति सीख लीजिए |
“कभी न छूटे पिंड दुखों से जिसे ब्रह्म का
ज्ञान नहीं |”
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