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Showing posts from June 9, 2018

jyot se jyot jalao .... price- 15 Rs/-

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इस पुस्तक के कुछ अंश . .. अधिकतम संसार आँखों से व कानों से प्रविष्ट होता है | जितना संसार का दर्शन, श्रवण कम होगा उतना ही संसार का आकर्षण कम होता जाएगा और जितना अधिक भगवान का चिंतन, स्मरण होगा उतना भगवान हमारे भीतर प्रविष्ट होते जाएँगे | संसार में रहें लेकिन संसार के रूप में जो इश्वर है, उसी इश्वर की सर्वत्र-सर्वदा और सर्वथा कृपा का दर्शन करें | यदि हर परिस्थिति ईश्वर द्वारा भेजी हुई लगने लगे तो फिर संसार संसार नहीं रह जाता, वह फिर प्रभु का विलास हो जाता है | फिर उसे हर परिस्थिति में शांति, आनंद और माधुर्य मिलने लगता है और वह स्वयं मुक्त स्वरुप हो जाता है | जो आत्मा में ही रत सदा, आत्मा में संतृप्त है | आत्मा में ही मग्न है, आत्मा से संतुष्ट है | आस्था सभी की त्यागकर निर्वासना सो धीर है, जीता हुआ सो मुक्त है, सशरीर भी अशरीर है |

jansankhya vruddhi - price-10 Rs/- ( only digital copy available )

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पुस्तक के कुछ अंश ... मनुष्य के पास केवल पेट ही नहीं होता, बल्कि दो हाथ, दो पैर और एक मस्तिष्क भी होता है, जिनसे वह केवल अपना ही नहीं, बल्कि कई प्राणियों का भरण-पोषण कर सकता है | फिर जनसंख्या वृद्धि की चिंता क्यों ? उत्पादन तो बढ़ाना चाहते हैं पर उत्पादक शक्ति (जनसंख्या) का ह्रास कर रहे हैं – यह कैसी बुद्धिमानी है ? एक-दो संतान होगी तो घर का काम ही पूरा नहीं होगा, फिर समाज का काम कौन करेगा? खेती कौन करेगा ? सेना में कौन भरती होगा ? सच्चा मार्ग बतानेवाला साधू कौन बनेगा ? बूढ़े माँ-बाप की सेवा कौन करेगा ? जन्म पर तो नियंत्रण, पर मौत पर नियंत्रण नहीं – यह कैसी बुद्धिमानी ? जो मृत्यु पर नियंत्रण नहीं रख सकता, उसको जन्म पर भी नियंत्रण रखने का अधिकार नहीं है |

દાનમ કેવલમ ... price-2 Rs/- (ગુજરાતી પુસ્તક)

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પુસ્તકોના સારાંશ .... આજની દિનચર્યામાં મનુષ્યો માટે સુખ-શાંતિ એક કલ્પના જ રહી ગઈ છે. તમે સ્વભાવિક રીતે મહેનત કાર્ય વગર આત્મ-સંતોષ મેળવવા માંગતા હો તો તેના માટે માનવતા અને કરુણાથી ભરેલાં હૃદયની જરૂરિયાત છે, પોતાના માટે પણ અને વિશ્વશાંતિ માટે પણ. તેથી તમે તમારી દિનચર્યામાં નીચે બતાવેલ સત્કર્મ જોડી લો. જો બધા ન કરી શકો તો બે તો અવશ્ય કરો. જીવમાત્ર પ્રતિ દયા અને મદદની ભાવના સાથે:- ૧) ગૌ માતાની સેવા – ગૌ માતા માટે રોટલી અને પાણીની કુંડીની વ્યવસ્થા. ૨) પક્ષીઓની સેવા – પક્ષીઓ માટે દાણા અને પાણીની કુંડીની વ્યવસ્થા. ૩) દરિદ્રનારાયણની સેવા – દરિદ્રનારાયણને રોજ ભોજન કરાવવું,નહી તો કોઈ એક ગરીબ પરિવારને ભોજન સામગ્રી આપવી. ૪) અસંગ્રહી બનવું –આપણી પાસે ઘરમાં જે સામાન વધારે હોય અથવા કામ વિનાનો હોય જેમકે જૂનાં કપડાં,ચંપલ, બુટ,વાસણ વગેરે જે બીજાના કામમાં આવે તેવી વસ્તુઓનું દાન કરો. અતિ સંગ્રહનો ત્યાગ કરવો.

bhagwaan kaun ....price- 10 Rs/-

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इस पुस्तक के कुछ अंश ........... ऋषियों की उद्घोषणा हमारे ऋषि-महर्षियों को जब ऐसी दिव्यतम अनुभूतियाँ हुई तो वे बोल उठे – हे विश्व के अमृत पुत्रों, सुनो ! हमने उस अमर तत्त्व को जान लिया है | आप भी उसी तत्त्व को जान लो | यह उपनिषद् के ऋषियों की घोषणा है | यही घोषणा श्रीकृष्ण ने की है | हे अर्जुन ! जो मैं हूँ वही तू है | फर्क इतना है कि तू जानता नहीं है, तुझे स्मरण नहीं है और मैं जानता हूँ | इस अनुभूति के लिए योग कर – तस्माद्योगी भवार्जुन : (गीता अ.६/४६) भगवद्तत्त्व को जानकार मनुष्य भी भगवत् स्वरुप हो जाता है, इसलिए ऋषियों ने यह घोषणा कर दी कि ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ यानी ‘मैं ही ब्रह्म हूँ’ और वह ब्रह्म कोई एक देशीय नहीं होता |

be kind to critics...price-3 rs/-

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is pustak ke kuchh ansh :-  If someone criticizes you, neither get angy at him. Rather wish well for him and pray that he attains enough wisdom to make fruitful use of his time. Let criticism and humiliation not perturb you. Wish well for your critics, be kind to them. Take criticism in your stride thinking that without applying any special efforts, you are becoming a source of happiness and contentment for your critics. Be happy by seeing them happy. Keep your inner joy intact. Pray that your critics quickly get rid of their vices and nurture virtues to lead a prosperous life.