वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता
इस पुस्तक के कुछ अंश :- सिर्फ पेट भरने की विद्या ही वास्तविक विद्या नहीं है ! शिक्षा में आध्यात्मिक संपुट होना चाहिए ! धर्म - अध्यात्म को शिक्षा में से नदारद करने का आग्रह शुष्क , खोखले - रसहीन समाज को पैदा करता है ! जरा सी विफलता से हार जाना , मनोबल खो देना , आत्महत्या करना - ये ऐसी घटनाएँ हैं जिन्हें हम कब तक अनदेखा करेंगे ? ये गंभीर समस्या है ! कही न कहीं हमारी शिक्षा प्रणाली में चूक है , गलती है और इसीलिए हम पढ़े - लिखे शिक्षित लेकिन असफल और बेरोजगार लोगों की लंबी चौड़ी फौज खड़ी करते जा रहे हैं ! आज की शिक्षा मुसीबतों में मुस्कुराने के पाठ नहीं पढ़ाती ! दुःख - कष्ट - विपदाओं से लोहा लेने की ताकत , अविचल रहने का हौंसला जिस शिक्षा से मिले वही वास्तव में शिक्षा है ! सच्ची शिक्षा तो वह है कि जो दु:खों में उद्वेग रहित रहना सिखाए , सुख में स्पृहा रहित बनाए , हर हाल में प्रसन्न रखे , जीवन को स्वप्नवत् - एक खेल की नाई समझाए , वही तो वास्तव में शिक्षा है । जो माता-पिता अपनी इच्छाओं और महत्त्वाकांक्षाओं को अपने बच्चों पर थोपकर उनका भविष्य निर्धारित करने की कोशिश करत
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