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Showing posts from June 5, 2018

jivan ki safalta ka rahasya....price- 10 Rs/- ( only digital copy available )

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इस पुस्तक के कुछ अंश ... जीवन में सफलता का रहस्य आखिरकार , सफलता की राह क्या है ? पूर्ण सुखी होने का उपाय क्या है ? जीवन की सार्थकता किसमें है - ये महत्वपूर्ण विषय कहे जाने वाले बड़े - बड़े धनवान , विद्वान , पदवान , लोग भी समझ नहीं पाते - कितना आश्चर्य है ! जो लोग यह समझते हैं कि धन मिल जाने से सुख मिलेगा तो सारे धनवान सुखी होते ! जो लोग यह समझते है कि ऊँचे पद पर पहुँच जाने पर सुख मिलेगा तो वे भी मूर्ख हैं क्योंकि ऊँचे पदों पर पहुँचने वाले भी दु : खी पाये गए है । सभी कुछ है - धन , संपत्ति , गाड़ी – मोटर, ऐशो - आराम के सारे साधन फिर भी अपूर्णता है जो कोस रही है - कुरेद रही है भीतर ही भीतर दीमक की नाई सबको खोखला बनाने के लिए लगी हुई है और इसी से बचने के लिए पूरी ताकत के साथ इंसान लगा है कि पूर्ण बन जाऊँ ।

sansaar sadhna ki prayogshala....Price- 10 Rs/- ( only digital copy available )

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इस पुस्तक के कुछ अंश ... संसार : साधना की प्रयोगशाला ये संसार क्या है ? कोई कहता संसार झंझट है । किसीने कहा – दु:खों की खान है । कोई कहता है अशांति का घर है । तो किसीने कहा कि संसार धर्मशाला है । मैं कहता हूँ संसार साधना की प्रयोगशाला है । मनुष्य ही मनुष्य का वैरी बन गया है । जिस धरती पर पैदा हुआ उसी धरती को - उसी दुनिया को बिगाड़ने पर तुला है । और अपने को समझदार मान रहा है । संसार एक सबसे बड़ी प्रयोगशाला है । इस प्रयोगशाला में साधना के प्रयोग चल रहे हैं परंतु अफ़सोस इस बात का है कि जिन्होंने सफल सार्थक जीवन जीने के प्रयोग किये और सफल हुए - उनकी की हुई साधना को अपनानेवाले साधक विरले ही हैं । अक्सर गलत साधनाएं या अनावश्यक साधनाएं बढ़ गई हैं ।

daanam kevlam kaliyuge.... Price-1 Rs/-

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इस पुस्तक के कुछ अंश ... दान महिमा करें प्राणीमात्र की सेवा , पाएँ सुख - समृद्धि का मेवा अगर हम गौर करें तो हमें पता चलेगा कि हमारे आस - पास की प्रकृति माता सतत देने का कार्य कर रही है । पीने के लिए पानी , साँसों के लिए हवा , सूर्य की किरणें आदि हमें बिना मोल ही मिलते हैं । परमात्मा एवं प्रकृति सतत प्राणीमात्र की सेवा में रत हैं । प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से हर प्राणी कुछ - न - कुछ योगदान देता ही है , जैसे बिल्ली चूहों को मारकर चूहों की वृद्धि संतुलित करती है । गाय के गोबर और मूत्र से पर्यावरण शुद्ध होता है । और तो और कोई भी प्राकृतिक आपदा आनेवाली होती है तो पशु - पक्षियों को उसका पहले संकेत मिल जाता है और उनके द्वारा मनुष्यों को भी संकेत मिल जाता है । आदान प्रदान की इस प्रकिया में क्या मनुष्य का यह कर्त्तव्य नहीं बनता कि वो भी प्राकृति के इस सेवाकार्य में कुछ योगदान दे याइन मूक प्राणियों की कुछ सेवा करे ? ये मूक और निर्दोष प्राणी अपनी आवश्यकता हमें शब्दों में नहीं बता सकते हैं । अतः जिस तरह हम अपनी भूख - प्यास को मिटाने के लिए सतत प्रयत्

premsindhu me gotaa maar.... price- 8 Rs/-

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इस पुस्तक के कुछ अंश ... वास्तव में , वही धन्य है जिसके हृदय में प्रेमभाव उत्पन्न हो गया ! बिना रस के , जीवन सूखा , नीरस , मशीन-सा हो गया ! भगवत्प्रेम में स्वतंत्र सुख छुपा है - जब चाहो - जहाँ चाहो , कभी संयोग में , कभी वियोग में - वह प्रेम कभी कम नहीं होता - बल्कि बढ़ता ही जाता है | भगवान रसमय हैं , नित्य नूतन हैं , उनका ध्यान , स्मरण , चिन्तन , दर्शन आपके नीरस जीवन को रसमय - आनन्दमय बनाने की ताकत रखता है | "रसो वै स : |" ********** जीवन को प्रेम से परिपूण कीजिए ********** गरमी की लौ है द्वेष , परन्तु भगवद्प्रेम बसंत का समीर है | त्याग तो प्रेम की परीक्षा है और बलिदान प्रेम की कसौटी है | प्रेम आँखों से कम और मन से ज्यादा देखता है | सच्चे प्रेम में अपना आप खो जाता है | ********** x

meri kalam se... price-60 Rs/-

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                                                                      इस पुस्तक से कुछ अंश ... सृजनात्मक लेखन , सृजनात्मक रचना , सृजनात्मक निर्माण एक अलग अनोखी प्रक्रिया है | अधिकतर जितने भी सृजक हुए है दुनियाभर में वे गलतियाँ कर - करके सीखे है , आगे बढ़े है | सृजक किसी का स्वामी नहीं होता | वह मित्र होता है | सृजक की हर एक क्षण समाधी कि क्षण होती है | कुछ नया , हरदम – नित्य नवीन सृजित करते रहने का आनंद ही कुछ और है ! कभी दिन में – कभी रात्रि में , जब चाहे , अनायास कुछ नया सृजित करने में स्वयं को खो देना , निर्विकार , निरहंकार अवस्था में पहुँच जाना और परम शांत परमानंद में मग्न होकर कुछ लिखना – सृजन करना मानो हर क्षण समाधी का सूख देती है ! काश ! एकाध क्षण , यह पढ़ते – पढ़ते आपकी भी ऐसी घटित हो गयी और समाधी के सहजानंद की आपको उपलब्धि हो गई तो क्या कहना ! वाह ! मेरे सृजन का , लेखन का इससे अच्छा व सर्वोत्तम फल और कुछ नहीं हो सकता | आशा

vartmaan shiksha me shighra parivartan ......price-199 Rs/- ( digital copy also available on store )

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इस पुस्तक के कुछ अंश .... Study is not life, It’s only a part of life. शिक्षा जीवन नहीं , जीवन का एक हिस्सा है ! आधुनिक शिक्षा तनावग्रस्त बोझिल जीवन देती है ! यह कैसी है जानलेवा शिक्षा ? आज की विफल शिक्षा - जो आत्महत्या करने पर मजबूर करती है ! आज की ‘ दिशा शून्य शिक्षा – जानलेवा है ! ’ असफल , बोझिल , तनावग्रस्त जिंदगीयों को बरबाद होने से बचाएँ ! आज की महँगी , बोझिल जानलेवा शिक्षा से अशिक्षित रहने को मैं बेहतर मानने लगा हूँ ।     मैं वर्तमान शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन चाहता हूँ । आये दिन किशोर - किशोरियों की पढ़ाई के बोझ व परीक्षा के डर के कारण होती आत्महत्याओं की खबरें पढ़कर बहुत व्यथित हो गया हूँ । क्या हमें सोचना नहीं चाहिए ? क्या शिक्षा का केवल यही अर्थ है ? शिक्षा के मायने यही है कि शिक्षार्थी विद्या को बोझ समझने लगे   ? मुझे लगता है कि वर्तमान शिक्षा असफल होती जा रही है । इन्दौर के रहनेवाले श्री पुरूषोत्तम अग्रवाल ने Learn By Fun (www.lbf.org) शुरू किया है तथा कक्षा 1 से 8 का पाठ्यक्रम तैयार किया है, जो हर स्कूल को निःशुल्क भेजा जाता है । उनक

Sai uvaach........price-25 Rs/-

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इस पुस्तक के कुछ अंश.... (1) सतत सावधानी ही साधना है       (11 अप्रैल , 2003, अहिल्या स्थान , बिहार)       बिहार के दरभंगा जिले के अहिल्या स्थान में जहाँ प्रभु श्रीराम ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था , उसी स्थान पर पूज्य साँई का चार दिवसीय सत्संग समारोह आयोजित हुआ । पहले दिन के प्रथम सत्र में हजारों श्रद्धालु श्रोताओं को संबोधित करते हुए पूज्यश्री ने कहा -       सतत सावधानी ही साधना है । असावधानी और लापरवाही असफलता का कारण है । चाहे कोई भी कार्य करो , उसमें सावधानी आवश्यक है । असावधान मछली काँटे में फँस जाती है , असावधान साँप मारा जाता है , असावधान हिरण शेर के मुख में चला जाता है , असावधान वाहन चालक दुर्घटना कर देता है और स्वयं व दूसरों को हानि पहुँचाता है । चलने में असावधान रहे तो ठोकर खानी पड़ती है , विद्यार्थी पढ़ने में सावधान न रहे तो उत्तीर्ण नहीं हो सकता । चाहे व्यवहार हो या परमार्थ , सावधानी अत्यंत आवश्यक है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सावधानी महत्वपूर्ण है ।       जब सज्जन लोग लापरवाह रहते हैं , तो समाज में दुर्जनता बढ़ जाती है , जरा-सी असावधा

Twamekam sharanyam....price-20 Rs/-

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इस पुस्तक के कुछ अंश... अपने आप पर कृपा कीजिए त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ! भगवान श्रीकृष्ण गीता के अठारवें अध्याय के ६२ वें श्लोक में शरणागति की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं – “ तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत | तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतं || ” हे भारत ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा | उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातम परमधाम को प्राप्त होगा | भूल हमारी कहाँ होती है कि हम परमात्मा की शरण ण होकर मनीराम की शरण हो जाते हैं | अब मन सदा माँगता ही रहता है, कभी संतुष्ट नहीं होता | दस इच्छाएँ पूरी होंगी तो सौ इच्छाएँ खड़ी कर देगा | मन हमें भटकाता रहता है और हम भी इसके बहकावे में आकार सोचने लगते हैं कि बस इतना काम पूरा हो जाए फिर मैं भजन करूँगा, बस मुझे डिग्री मिल जाए फिर मैं सत्संग में जाऊँगा, बस एक बार मैं रिटायर हो जाऊँ फिर शांति से हरि कीर्तन में लग जाऊँगा | पर जरा विवेक की नजर से देखो और सोचो कि ऐसा कौन है जिसके सब का