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इस पुस्तक के कुछ अंश....
(1) सतत सावधानी ही साधना है
      (11 अप्रैल, 2003, अहिल्या स्थान, बिहार)

      बिहार के दरभंगा जिले के अहिल्या स्थान में जहाँ प्रभु श्रीराम ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था, उसी स्थान पर पूज्य साँई का चार दिवसीय सत्संग समारोह आयोजित हुआ । पहले दिन के प्रथम सत्र में हजारों श्रद्धालु श्रोताओं को संबोधित करते हुए पूज्यश्री ने कहा -

      सतत सावधानी ही साधना है । असावधानी और लापरवाही असफलता का कारण है । चाहे कोई भी कार्य करो, उसमें सावधानी आवश्यक है । असावधान मछली काँटे में फँस जाती है, असावधान साँप मारा जाता है, असावधान हिरण शेर के मुख में चला जाता है, असावधान वाहन चालक दुर्घटना कर देता है और स्वयं व दूसरों को हानि पहुँचाता है । चलने में असावधान रहे तो ठोकर खानी पड़ती है, विद्यार्थी पढ़ने में सावधान न रहे तो उत्तीर्ण नहीं हो सकता । चाहे व्यवहार हो या परमार्थ, सावधानी अत्यंत आवश्यक है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सावधानी महत्वपूर्ण है ।
      जब सज्जन लोग लापरवाह रहते हैं, तो समाज में दुर्जनता बढ़ जाती है, जरा-सी असावधानी बहुत बड़ी हानि कर देती है । हर एक दिन के साथ सावधानी जुड़ी है, ऐसा कोई भी कार्य न करो जिसमें असावधानी का अंश हो । जितनी-जितनी असावधानी मिटती जायेगी, सावधानी बढ़ती जायेगी, उतना ही जीवन उन्नत होता जायेगा । अपना प्रत्येक कार्य सावधानी के साथ करें और संकीर्णता से बचें । संकीर्ण बुद्धि वाले की योग्यता का विकास नहीं हो सकता, वह अपने ही विचारों के दायरे में उलझा रहता है । अतः अपने मन को विस्तृत बनाओ । बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कुछ न कुछ अच्छाई छुपी रहती है, उसे देखकर उसे अपनाने का यत्न करो ।


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