Twamekam sharanyam....price-20 Rs/-
इस पुस्तक के कुछ अंश...
अपने आप पर कृपा कीजिए
त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव !
भगवान श्रीकृष्ण गीता के अठारवें अध्याय के ६२ वें श्लोक
में शरणागति की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं –
“तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतं ||”
हे भारत ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा |
उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातम परमधाम को प्राप्त होगा |
भूल हमारी कहाँ होती है कि हम परमात्मा की शरण ण होकर
मनीराम की शरण हो जाते हैं | अब मन सदा माँगता ही रहता है, कभी संतुष्ट नहीं होता
| दस इच्छाएँ पूरी होंगी तो सौ इच्छाएँ खड़ी कर देगा | मन हमें भटकाता रहता है और
हम भी इसके बहकावे में आकार सोचने लगते हैं कि बस इतना काम पूरा हो जाए फिर मैं
भजन करूँगा, बस मुझे डिग्री मिल जाए फिर मैं सत्संग में जाऊँगा, बस एक बार मैं
रिटायर हो जाऊँ फिर शांति से हरि कीर्तन में लग जाऊँगा | पर जरा विवेक की नजर से
देखो और सोचो कि ऐसा कौन है जिसके सब काम पूरे हो गए हों | अरे भाई ! यदि मौत
सामने आएगी, तो क्या उससे भी यही कहोगे कि बस डिग्री ले लेने दो, रिटायर हो जाने
दो, फिर लेने आना | नहीं, नहीं, वहाँ किसी का जोर नहीं चलता |
न जातु कामः कामानाम् उपभोगेन शाम्यति |
हविषा कृष्णवर्तेन भूयः एवाभिवर्धते ||
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