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इस पुस्तक के कुछ अंश ...
वास्तव में ,
वही धन्य है जिसके हृदय में प्रेमभाव उत्पन्न हो गया !
बिना रस के, जीवन सूखा, नीरस, मशीन-सा हो गया !
भगवत्प्रेम में स्वतंत्र सुख छुपा है -
जब चाहो-जहाँ चाहो,
कभी संयोग में, कभी वियोग में -
वह प्रेम कभी कम नहीं होता -
बल्कि बढ़ता ही जाता है |
भगवान रसमय हैं,
नित्य नूतन हैं, उनका
ध्यान, स्मरण, चिन्तन,
दर्शन आपके नीरस
जीवन को रसमय -
आनन्दमय बनाने
की ताकत रखता है |
"रसो वै स: |"
**********
जीवन को प्रेम से परिपूण कीजिए
**********
गरमी की लौ है द्वेष, परन्तु भगवद्प्रेम
बसंत का समीर है | त्याग तो प्रेम की
परीक्षा है और बलिदान प्रेम की कसौटी है |
प्रेम आँखों से कम और मन से ज्यादा
देखता है | सच्चे प्रेम में अपना
आप खो जाता है |
**********


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