daanam kevlam kaliyuge.... Price-1 Rs/-
इस पुस्तक के कुछ अंश ...
दान महिमा
करें प्राणीमात्र की सेवा, पाएँ सुख-समृद्धि का मेवा
अगर हम गौर करें तो हमें पता चलेगा कि हमारे आस-पास की प्रकृति माता सतत देने का कार्य कर रही है । पीने के लिए पानी,
साँसों के लिए हवा, सूर्य की किरणें आदि हमें बिना
मोल ही मिलते हैं । परमात्मा एवं प्रकृति सतत प्राणीमात्र की सेवा में रत हैं । प्रकृति
का संतुलन बनाए रखने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से हर प्राणी कुछ-न-कुछ योगदान देता ही है, जैसे
बिल्ली चूहों को मारकर चूहों की वृद्धि संतुलित करती है ।
गाय के गोबर और मूत्र से पर्यावरण शुद्ध होता है । और तो और
कोई भी प्राकृतिक आपदा आनेवाली होती है तो पशु-पक्षियों को उसका
पहले संकेत मिल जाता है और उनके द्वारा मनुष्यों को भी संकेत मिल जाता है ।
आदान प्रदान की इस प्रकिया में क्या मनुष्य का यह कर्त्तव्य
नहीं बनता कि वो भी प्राकृति के इस सेवाकार्य में कुछ योगदान दे याइन मूक प्राणियों
की कुछ सेवा करे ? ये मूक और निर्दोष प्राणी अपनी आवश्यकता हमें
शब्दों में नहीं बता सकते हैं । अतः जिस तरह हम अपनी भूख-प्यास
को मिटाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं, उसी प्रकार उनके लिए
उपयुक्त भोजन तथा पानी की व्यवस्था करके उनका पोषण और रक्षण करना हम सभी का कर्त्तव्य
बनता है ।
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