jyot se jyot jalao .... price- 15 Rs/-
इस पुस्तक के कुछ अंश ...
अधिकतम संसार आँखों से व कानों से प्रविष्ट होता है | जितना संसार का दर्शन,
श्रवण कम होगा उतना ही संसार का आकर्षण कम होता जाएगा और जितना अधिक भगवान का
चिंतन, स्मरण होगा उतना भगवान हमारे भीतर प्रविष्ट होते जाएँगे | संसार में रहें
लेकिन संसार के रूप में जो इश्वर है, उसी इश्वर की सर्वत्र-सर्वदा और सर्वथा कृपा
का दर्शन करें | यदि हर परिस्थिति ईश्वर द्वारा भेजी हुई लगने लगे तो फिर संसार
संसार नहीं रह जाता, वह फिर प्रभु का विलास हो जाता है | फिर उसे हर परिस्थिति में
शांति, आनंद और माधुर्य मिलने लगता है और वह स्वयं मुक्त स्वरुप हो जाता है |
जो आत्मा में ही रत सदा,
आत्मा में संतृप्त है |
आत्मा में ही मग्न है,
आत्मा से संतुष्ट है |
आस्था सभी की त्यागकर
निर्वासना सो धीर है,
जीता हुआ सो मुक्त है,
सशरीर भी अशरीर है |
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