kanoonon ke jangalraj me ...price-5 Rs/-
इस पुस्तक के कुछ अंश ...
कानून का जंगलराज
हमारे देश की सारी व्यवस्थाएँ जिस प्रकार असफलताओं का दोषारोपण
एक-दूसरे पर करती नजर आती है, क्या इनमें से
किसी एक घटक ने भी कभी अपने कर्तव्यों के पालन पर गंभीर चिन्तन-मनन और क्रियान्वयन का विचार किया ?
आम आदमी को अदालतों की चमक-दमक या
वकीलों की शान देखने का कोई शौक नहीं है, लोगों को न्याय चाहिए,
वह भी तुरन्त और सस्ता ! क्या हमारी व्यवस्थाएँ
लोगों को शीघ्र और सस्ता न्याय कभी दे पायेंगी ? इसके लिए ठोस
कदम सरकारें उठायेंगी ? आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा
?
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर.एम.लोढा ने एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील
से कहा कि न्याय में देरी का सारा दोष न्यायाधीशों पर लगाना उचित नहीं है । इसके लिए
सरकार को उच्च न्यायालय स्तर पर न्यायाधीशों की संख्या बढानी पड़ेगी ।
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