yogam dhyanam... price- 20 Rs/- ( only digital copy available)
इस पुस्तक के कुछ अंश ...
हम सभी सुखी, स्वस्थ और
सम्मानित जीवन जीना चाहते हैं । किंतु पढ़ाई, नौकरी और परिवार की जिम्मेदारियों के
कारण हम दिनभर भागदौड़ करते रहते हैं । परिणाम स्वरुप हमें प्राप्त होता है,
शारीरिक रोग एवं मानसिक अशांति । अतः हम आपके लिए एक अनुपम उपहार लेकर उपस्थित हुए
हैं, जिसका नाम है ‘योगम् - ध्यानम्... ( संकीर्तन - तलियोग ) ।’
योग एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर,
मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का कार्य होता है । लोगों
को आमतौर पर लगता है कि योग व्यायाम का एक रूप है जिसमें शरीर के हिस्सों को हिलाना-डुलाना
शामिल है, लेकिन योग व्यायाम से बढ़कर है । योग मानसिक,
आध्यात्मिक और शारीरिक पथ के माध्यम से जीवन जीने की कला है
।
यह स्थिरता प्राप्त करने और आंतरिक आत्मा की चेतना की गहराई
में उतरने के लिए सहायता करता है । हमारा मन केवल भावनाओं और शारीरिक आवश्यकताओं
के बारे में ज्यादा न सोचे और दिन-प्रतिदिन जीवन की चुनौतियों का सामना कैसे करे ?
यह सीखने में भी योग मदद करता है । योग शरीर, मन और ऊर्जा के स्तर पर काम करता है । योग का नियमित अभ्यास
शरीर में सकारात्मक बदलाव लाता है जिनमें मजबूत मांसपेशियाँ,
लचीलापन, धैर्य और अच्छा स्वास्थ्य भी शामिल है ।
अब चर्चा करते हैं
संकीर्तन-तालियोगा की । संस्कृत साहित्य में १२० तालों का वर्णन है । परंपरा के
अनुसार हिन्दू संगीत के प्रथम आचार्य माने जानेवाले भरत मुनि भारद्वाज के बारे में
कहा जाता है कि उन्होंने कोकिला के गीत में ही ३२ तालों का शोध किया था । ताल या
लय का मूल मानव शरीर की गति पर आधारित है – चलने का दुगना समय तथा निद्रावस्था में
श्वासोच्छ्वास का तिगना समय जब श्वास की लंबाई प्रश्वास से दुगनी होती है – में
निहित है ।
मानव स्वयं नादब्रह्म या
ॐ ध्वनि की एक अभिव्यक्ति है, इसलिए ध्वनि उस पर तत्काल प्रबल प्रभाव डालती है ।
पौर्वात्य और पाश्चात्य, दोनों ही प्रकार का भक्ति संगीत मनुष्य में आनंद उत्पन्न
कर देता है, क्योंकि इस प्रकार का संगीत मनुष्य के मेरुदंड में स्थित चक्रों में
से किसी चक्र में उतने समय के लिए स्पन्दनात्मक जागृति उत्पन्न कर देता है । आनंद
के उन क्षणों में उसे अपने ईश्वरीय मूल का अस्फुट-सा स्मरण हो जाता है ।
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